भाषा प्रारंभिक साक्षरता कौशल का प्रमुख है अवयव है।भाषा संचार का माध्यम है।यह बातचीत करने और दूसरों तक संदेश भेजने की एक स्वाभाविक मानवीय इच्छा है ।यह सोचने ,अनुभव करने एवं प्रतिक्रिया देने के साधन के रूप में भी है ।बच्चों की रुचियों , मूल्यों और दृष्टिकोण को समझने के लिए काम करती है अर्थात बच्चे अपनी मातृभाषा से स्कूली भाषा को सीखते हैं ।बुनियादी स्तर पर बच्चे भाषा सीखते हैं जबकि आगे चलकर यही बच्चे भाषा के माध्यम से विषयों को सिखाते हैं ।अपनी शैक्षणिक उपलब्धियां को हासिल करते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो शुरुआती दौर में बच्चे भाषा सीखते हैं ,और बाद में भाषा के माध्यम से उच्च ज्ञान अर्जित करते हैं।
बचपन में भाषा सीखने की क्षमता और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृत्ति प्राकृतिक होती है। इसके पीछे कई कारण हैं:मस्तिष्क की लचीलापन (Plasticity): छोटे बच्चों का मस्तिष्क बहुत लचीला होता है और नई जानकारी को जल्दी और आसानी से ग्रहण कर सकता है।पर्यावरण का प्रभाव: बच्चे अपने आसपास के वातावरण से भाषा सीखते हैं। वे अपने माता-पिता, भाई-बहनों और अन्य लोगों से बातचीत करके भाषा के मूलभूत तत्व सीखते हैं।नकल करने की क्षमता: बच्चे स्वाभाविक रूप से नकल करते हैं। वे शब्दों, ध्वनियों और वाक्य संरचनाओं की नकल करके भाषा सीखते हैं।खेल और गतिविधियों के माध्यम से सीखना: बच्चे खेलते हुए और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेते हुए भाषा सीखते हैं। खेल और गतिविधियाँ भाषा सीखने को रोचक और मजेदार बनाती हैं।अनुभव और प्रयोग: बच्चे भाषा का प्रयोग करके अनुभव से सीखते हैं। वे अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते हैं और प्रतिक्रिया प्राप्त करते हैं।इस प्रकार, बचपन में भाषा सीखना एक प्राकृतिक और सहज प्रक्रिया है, जो बच्चे के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हाँ, बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। यह प्रवृत्ति कई कारकों पर आधारित है:
1. **जैविक आधार**: नोम चोम्स्की के "यूनिवर्सल ग्रामर" सिद्धांत के अनुसार, बच्चों का मस्तिष्क जन्म से ही भाषा की संरचना को समझने के लिए तैयार होता है।
2. **पर्यावरणीय प्रभाव**: बच्चे अपने आसपास के लोगों से बातचीत और सुनने के माध्यम से भाषा सीखते हैं। वे अपने परिवार, शिक्षकों और दोस्तों से नई शब्दावली और वाक्य संरचनाएं ग्रहण करते हैं।
3. **अनुकरण और पुनरावृत्ति**: बच्चे बड़े लोगों की भाषा की नकल करते हैं और बार-बार सुनने और बोलने से भाषा को आत्मसात करते हैं। यह उन्हें भाषा की संरचना और शब्दावली को समझने में मदद करता है।
4. **आवश्यकता और प्रेरणा**: बच्चे अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं को व्यक्त करने के लिए भाषा का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी भाषा सीखने की प्रेरणा बढ़ती है।
5. **संज्ञानात्मक विकास**: भाषा सीखने की प्रक्रिया में बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास होता है।
Bachpan se hi bachche me bhasha sikhne aur use bolne ki nasargik prakritik adat hoti hai.yeye apne aspas se sunne wali dhvaniyon ko sunkr sikh the hain.
बच्चों की अपने परिवेश की एक परिवेशीय भाषा होती है जिसके द्वारा ही वह अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जित करता है और बहुत सी जानकारी एकत्रित करता है जो अपनी मातृभाषा से अन्य भाषाओं एवं विषयों की जानकारी स्वत अर्जित करता रहता है
हां बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की जरूरत होती है बच्चे अपने परिवेश से परवेशी भाषा के माध्यम से बहुत कुछ सीखते हैं और वह धीरे-धीरे अपनी बातों को स्पष्ट कर देते हैं
Bacche mein Bhasha sikhane ka gun janmjaat hota hai. Prarambh mein baccha Apne Mata pita ka parivar ke Anya sadasyon ki baton ko Dhyan se sunta hai, pratikriya deta hai aur धीरे-धीरे bhasha ke kuchh Shabd bolane bolna shuru kar deta hai 3 varsh ki umra Tak baccha lagbhag apni Marg bhasha mein acche se baat karna Sikh jata hai
भाषा प्रारंभिक साक्षरता कौशल का प्रमुख है अवयव है।भाषा संचार का माध्यम है।यह बातचीत करने और दूसरों तक संदेश भेजने की एक स्वाभाविक मानवीय इच्छा है ।यह सोचने ,अनुभव करने एवं प्रतिक्रिया देने के साधन के रूप में भी है ।बच्चों की रुचियों , मूल्यों और दृष्टिकोण को समझने के लिए काम करती है अर्थात बच्चे अपनी मातृभाषा से स्कूली भाषा को सीखते हैं ।बुनियादी स्तर पर बच्चे भाषा सीखते हैं जबकि आगे चलकर यही बच्चे भाषा के माध्यम से विषयों को सिखाते हैं ।अपनी शैक्षणिक उपलब्धियां को हासिल करते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो शुरुआती दौर में बच्चे भाषा सीखते हैं ,और बाद में भाषा के माध्यम से उच्च ज्ञान अर्जित करते हैं।
भाषा बुनियादी साक्षरता का प्रमुख अवयव है। बच्चे जन्म से ही सीखने की स्वभाविक प्रवृति से युक्त होते हैं। उनका तंत्रिका-तंत्र बहुत तेज गति से विकसित होता है। उनका 80% मस्तिष्क प्रारंभिक बाल्यकाल में विकसित हो चुका होता है। वे शैशवकाल से ही अपने पर्यावरण से उच्चारण, ध्वनियों, व्यक्तियों के हाव-भाव आदि से अक्षरों एवं शब्दों को सीखने लगते हैं। क्रमशः इसी प्रकार भाषा कौशल विकसित होता है और तत्पश्चात वे बोलकर नवीन जानकारियां प्राप्त करते हैं, और अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हैं तथा अपने ज्ञान भंडार की वृद्धि करते हैं।
Watch the video film “Khula Aakash” 2014 from the following link: https://www.youtube.com/watch?v=1XjDHOrcJyw and reflect on it. Think about what is ECCE? Why is it important? How does ECCE provide a basis for learning in school and life? Share your reflections.
Visualise the significance of FLN Mission and ponder on what can be the role of ECCE in achieving the goals and objectives of FLN? Share your thoughts.
Reflect on the experiences provided by you to children in the early years. Are all children being provided the same set of instructions and have fixed testing schedules or variation in learning is accounted for? In your opinion, what are the benefits/limitations in using a learner-centred approach? Share your reflection.
बुनियादी भाषा और साक्षरता
ReplyDeleteYes
Deleteshivprakash sharma ups satha yes bacha janam sa he sunna or samjna suru kr deta ha
Deleteबच्चे के स्वभाव में जन्म से ही सीखने का गुण होता है
DeleteGood
DeleteGood
ReplyDeleteGOOD
ReplyDeleteYes
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ReplyDeleteबुनियादी भाषा और साक्षरता
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteबुनियादी भाषा वा शिक्षा
ReplyDeleteIt's our in constitution as well ,that a child grasp more if taught in their mother toungue. Learning and comprehension ability will increase
ReplyDeleteEvery child is lad
Deleteबच्चीं मे भाषा सिखने का स्वाभविक गुण होता ह
ReplyDeleteBachcho me yah gun apane pariwar se ata hai
ReplyDeleteIt is our in constitution as well, that a child grasp more if taught in their mother tongue.Learning and comprehension ability will increase.
ReplyDeleteबच्चे जन्म के समय से ही सुनना और समझाना आरम्भ कर देते हैं उनके सुमने में स्वयं से समझाना भी निहित हैं
ReplyDeleteLearning language is natural process
ReplyDeleteBacche bhasha bhut jaldi sikhte h
ReplyDeleteबच्चीं मे भाषा सिखने का स्वाभविक गुण होता ह
Deleteहाँ जी,
ReplyDeleteभाषा सीखने की बच्चों मे जन्मजात क्षमता होती है। वे अपने परिवेश से बचपन से ही भाषा अर्जित करने लगते है।
ReplyDeleteHaan..... bachcho me ye gun swabhavik hota hai.....
ReplyDeleteभाषा प्रारंभिक साक्षरता कौशल का प्रमुख है अवयव है।भाषा संचार का माध्यम है।यह बातचीत करने और दूसरों तक संदेश भेजने की एक स्वाभाविक मानवीय इच्छा है ।यह सोचने ,अनुभव करने एवं प्रतिक्रिया देने के साधन के रूप में भी है ।बच्चों की रुचियों , मूल्यों और दृष्टिकोण को समझने के लिए काम करती है अर्थात बच्चे अपनी मातृभाषा से स्कूली भाषा को सीखते हैं ।बुनियादी स्तर पर बच्चे भाषा सीखते हैं जबकि आगे चलकर यही बच्चे भाषा के माध्यम से विषयों को सिखाते हैं ।अपनी शैक्षणिक उपलब्धियां को हासिल करते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो शुरुआती दौर में बच्चे भाषा सीखते हैं ,और बाद में भाषा के माध्यम से उच्च ज्ञान अर्जित करते हैं।
ReplyDeleteYes
ReplyDeleteबुनियादी भाषा और साक्षरता
ReplyDeleteIt's our in constitution as well ,that a child grasp more if taught in their mother toungue. Learning and comprehension ability will increase
ReplyDeleteRight
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ReplyDeleteBacchon Mein Bhasha sikhane ki janmjaat kshamta hoti hai
ReplyDeleteबच्चे समग्र रूप से कोई भी चीज़ जल्दी सीखते हैं। पहले सम्पूर्ण बताना फिर उसको टुकड़ों में बांटना चाहिए। चाहे वह भाषा हो या कुछ और.
ReplyDeleteबचपन में भाषा सीखने की क्षमता और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृत्ति प्राकृतिक होती है। इसके पीछे कई कारण हैं:मस्तिष्क की लचीलापन (Plasticity): छोटे बच्चों का मस्तिष्क बहुत लचीला होता है और नई जानकारी को जल्दी और आसानी से ग्रहण कर सकता है।पर्यावरण का प्रभाव: बच्चे अपने आसपास के वातावरण से भाषा सीखते हैं। वे अपने माता-पिता, भाई-बहनों और अन्य लोगों से बातचीत करके भाषा के मूलभूत तत्व सीखते हैं।नकल करने की क्षमता: बच्चे स्वाभाविक रूप से नकल करते हैं। वे शब्दों, ध्वनियों और वाक्य संरचनाओं की नकल करके भाषा सीखते हैं।खेल और गतिविधियों के माध्यम से सीखना: बच्चे खेलते हुए और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेते हुए भाषा सीखते हैं। खेल और गतिविधियाँ भाषा सीखने को रोचक और मजेदार बनाती हैं।अनुभव और प्रयोग: बच्चे भाषा का प्रयोग करके अनुभव से सीखते हैं। वे अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते हैं और प्रतिक्रिया प्राप्त करते हैं।इस प्रकार, बचपन में भाषा सीखना एक प्राकृतिक और सहज प्रक्रिया है, जो बच्चे के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
ReplyDeleteभाषा सीखने की बच्चों मे जन्मजात क्षमता होती है। वे अपने परिवेश से बचपन से ही भाषा अर्जित करने लगते है।
ReplyDeleteREPLY
भाषा सीखने की बच्चों मे जन्मजात क्षमता होती है। वे अपने परिवेश से बचपन से ही भाषा अर्जित करने लगते है।
ReplyDeleteहाँ, बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। यह प्रवृत्ति कई कारकों पर आधारित है:
ReplyDelete1. **जैविक आधार**: नोम चोम्स्की के "यूनिवर्सल ग्रामर" सिद्धांत के अनुसार, बच्चों का मस्तिष्क जन्म से ही भाषा की संरचना को समझने के लिए तैयार होता है।
2. **पर्यावरणीय प्रभाव**: बच्चे अपने आसपास के लोगों से बातचीत और सुनने के माध्यम से भाषा सीखते हैं। वे अपने परिवार, शिक्षकों और दोस्तों से नई शब्दावली और वाक्य संरचनाएं ग्रहण करते हैं।
3. **अनुकरण और पुनरावृत्ति**: बच्चे बड़े लोगों की भाषा की नकल करते हैं और बार-बार सुनने और बोलने से भाषा को आत्मसात करते हैं। यह उन्हें भाषा की संरचना और शब्दावली को समझने में मदद करता है।
4. **आवश्यकता और प्रेरणा**: बच्चे अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं को व्यक्त करने के लिए भाषा का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी भाषा सीखने की प्रेरणा बढ़ती है।
5. **संज्ञानात्मक विकास**: भाषा सीखने की प्रक्रिया में बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास होता है।
Bhasha Sikhna ek natural baat h ..Bt bhasa ke madhayam se kuch bhi sikhna important hai
ReplyDeleteJi ha bachchon me seekhane ki pravriti hoti hai
ReplyDeleteHa bachche kuchh apane aap seekhate hai
ReplyDeleteYes
ReplyDeleteBachche apni aavashyakta ko viyakt karne ke liya bhasha ka prayog karte h
ReplyDeletey
Bachpan se hi bachche me bhasha sikhne aur use bolne ki nasargik prakritik adat hoti hai.yeye apne aspas se sunne wali dhvaniyon ko sunkr sikh the hain.
ReplyDeleteबच्चीं मे भाषा सिखने का स्वाभविक गुण होता ह
ReplyDeleteyeh ek maulik pravitti hoti hai baccho ke bhashai vikas ko buniyadi bhasha aur saksharta ke madhyam se sudran banaya ja sakta hai
ReplyDeleteYes bachchon main seekhne ki pravarti janam se hi hoti hai
ReplyDeleteBuniyadi bhasha aur saksharta
ReplyDeleteभाषा पढ़ाने के लिए पहले बर्णमाला पढाना चाहिए फिर स्वतंत्र बर्नज्ञान कराना चाहिए ।
ReplyDeleteजीवन जीने एवं सम्बंधो को बनाए रखने का एक माध्यम है
ReplyDeleteYes , class room teaching is one of the good example for this .
ReplyDeleteVery effective
ReplyDeleteGive pressure free environment to kids that helps them to share their thoughts and learn effectively
Yes
Deleteबच्चों की अपने परिवेश की एक परिवेशीय भाषा होती है जिसके द्वारा ही वह अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जित करता है और बहुत सी जानकारी एकत्रित करता है जो अपनी मातृभाषा से अन्य भाषाओं एवं विषयों की जानकारी स्वत अर्जित करता रहता है
ReplyDeleteहां बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की जरूरत होती है बच्चे अपने परिवेश से परवेशी भाषा के माध्यम से बहुत कुछ सीखते हैं और वह धीरे-धीरे अपनी बातों को स्पष्ट कर देते हैं
ReplyDeleteBacche apni matrbhasha me acche se samajhte v sheekhtein hein
ReplyDeleteBacchon ko unki bhasha me sikhna asaan hota
ReplyDeleteहां, बच्चों में भाषा सीखने की और भाषा के माध्यम से बेहतर सीखने की प्रवृत्ति होती हैं ।
ReplyDeleteBacche mein Bhasha sikhane ka gun janmjaat hota hai. Prarambh mein baccha Apne Mata pita ka parivar ke Anya sadasyon ki baton ko Dhyan se sunta hai, pratikriya deta hai aur धीरे-धीरे bhasha ke kuchh Shabd bolane bolna shuru kar deta hai 3 varsh ki umra Tak baccha lagbhag apni Marg bhasha mein acche se baat karna Sikh jata hai
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ReplyDeleteबच्चों में सीखने की प्रवृत्ति जन्म से ही होती है मातृभाषा में ही बच्चे जल्दी सीखते हैं
ReplyDeleteBacchon mein Bhasha sikhane ki pravritti janm se Hoti hai matrabhasha mein hi bacche jaldi sikhate Hain
ReplyDeleteBacche sikhne mai bahut Ruchi rakhte hai
ReplyDeleteBche jldi sikhte hai
ReplyDeleteबच्चे जन्म से ही सुनना और समझना शुरू कर देते हैं।उनके सुनने में ही समझना निहित होता है।
ReplyDeleteबच्चे जन्म से ही सुनना और समझना शुरू कर देते हैं। उनके सुनने में ही स्वयं की समझ निहित है।
ReplyDeleteबच्चे के स्वभाव में जन्म से ही सीखने का गुण होता है
ReplyDeleteबच्चे बड़े लोगों की भाषा की नकल करते हैं और बार-बार सुनने और बोलने से भाषा को आत्मसात करते हैं।
ReplyDeleteभाषा प्रारंभिक साक्षरता कौशल का प्रमुख है अवयव है।भाषा संचार का माध्यम है।यह बातचीत करने और दूसरों तक संदेश भेजने की एक स्वाभाविक मानवीय इच्छा है ।यह सोचने ,अनुभव करने एवं प्रतिक्रिया देने के साधन के रूप में भी है ।बच्चों की रुचियों , मूल्यों और दृष्टिकोण को समझने के लिए काम करती है अर्थात बच्चे अपनी मातृभाषा से स्कूली भाषा को सीखते हैं ।बुनियादी स्तर पर बच्चे भाषा सीखते हैं जबकि आगे चलकर यही बच्चे भाषा के माध्यम से विषयों को सिखाते हैं ।अपनी शैक्षणिक उपलब्धियां को हासिल करते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो शुरुआती दौर में बच्चे भाषा सीखते हैं ,और बाद में भाषा के माध्यम से उच्च ज्ञान अर्जित करते हैं।
ReplyDeleteभाषा बुनियादी साक्षरता का प्रमुख अवयव है। बच्चे जन्म से ही सीखने की स्वभाविक प्रवृति से युक्त होते हैं। उनका तंत्रिका-तंत्र बहुत तेज गति से विकसित होता है। उनका 80% मस्तिष्क प्रारंभिक बाल्यकाल में विकसित हो चुका होता है। वे शैशवकाल से ही अपने पर्यावरण से उच्चारण, ध्वनियों, व्यक्तियों के हाव-भाव आदि से अक्षरों एवं शब्दों को सीखने लगते हैं। क्रमशः इसी प्रकार भाषा कौशल विकसित होता है और तत्पश्चात वे बोलकर नवीन जानकारियां प्राप्त करते हैं, और अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हैं तथा अपने ज्ञान भंडार की वृद्धि करते हैं।
ReplyDeleteजी हाँ, होती है, बच्चे अपने परिवेश में बोली जाने वाली भाषा में सरलता व सहजता से सीखते हैं
ReplyDeleteबच्चे अपने परिवेश में, दोस्तों से, परिवार के सदस्यों आदि से परस्पर बातचीत से भाषा सीखते हैं
ReplyDeleteBaccho apni bhasha me jaldi sikhte hai
ReplyDeleteBachche apni bhasha me jaldi sikhte hai
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